सोमवार, 7 नवंबर 2011

संवेदना एक ब्लॉगर की भावनाए .....http://amritabharti.wordpress.com

भूमिहार…..!

काश! की मैं भूमिहार ना होता,
तो यूँ जीने को मजबूर ना होता.
दसवीं मे पढ़ाई कर करके,
ये मोटा सा चश्मा गर लगाया ना होता,
तो गर्ल फ्रेंड से यूँ पराया ना होता,
काश! की मैं भूमिहार ना होता,
कॉलेज अड्मिशन मे धके खा ख़ाके,
ये जूता गर मेरा घिस्सा ना होता,
तो माँ की आँखों मे यूँ आँसू ना होता,
काश! की मैं भूमिहार ना होता,
इंटरव्यू मे प्रश्नोतर की जगह,
अगर! मैं हरिजन बोला होता,
तो अपने पास भी एक जॉब होता,
काश! की मैं भूमिहार ना होता,
ज़िंदगी मे जब भी ज़रूरत आन पड़ता,
हरिजन बनाना तब मुझे भता,
गाड़ी,बंगले,नौकर सब मैं पाता,
काश! की मैं भूमिहार ना होता,




संवेदना ….शायद यह एक जन मानस की है

पर सच है ….
इसे आरछ्ण के खिलाफ़ होने वाले नयी क्रान्ति के उदगम के रुप में देखता हुं……

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