सोमवार, 25 जून 2012

भूमिहारों के ईश्वर ब्रह्मेश्वर की हत्या

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2002 में 29 अगस्त को जब पहली बार यह खबर आई कि रणवीर सेना का "मुखिया" गिरफ्तार हो चुके  है तो शायद सबके मन में एक ही सवाल था कि आखिर वह आदमी दिखता कैसा है जिसने सात आठ सालों के अंदर ही प्रतिक्रियावादी नरंसहारों की झड़ी लगवा दी थी?

 बिहार में जड़ जमाते मालेवादी हिंसा के जवाब में सवर्णों की ओर से जो जवाब दिया गया था वह इतना जघन्य था कि देखने सुननेवालों की रूह कांप जाती थी. इन जघन्य हत्याकांडों का सूत्रधार जब पहली बार दुनिया के सामने आया तो वह कहीं से चमत्कारिक नजर नहीं आया. निहायत सीधा सादा सा दिखनेवाला वह आदमी अपनी उसी सादगी का शिकार हो गया जब नवादा के कटीरा मोहल्ला स्थित उसके घर के सामने ही गोलियों से भूनकर उसकी हत्या कर दी गई. करीब नौ साल जेल में काटने के बाद ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ मुखिया जी इन दिनों हिंसक रास्ते को छोड़कर सामाजिक आंदोलन की तरफ अग्रसर हो चले थे.

ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया को रणवीरे सेना का संस्थापक कहा जाता है. 1994 में रणवीर बाबा की याद में इस रणवीर किसान संघर्ष समिति का का गठन किया गया था जिन्होंने 19वीं सदी में राजपूतों से भूमिहारों के हितों की रक्षा की थी. यही रणवीर किसान संघर्ष समिति आगे चलकर रणवीर सेना के रूप में पहचाने जाने लगी. रणवीर सेना कई छोटी छोटी सेना का संयुक्त गठबंधन थी जिसमें ब्रह्मर्षि सेना, कुएर सेना, किसान मोर्चा और गंगा सेना ने अपने आपको शामिल कर लिया था और मध्य बिहार में नक्सलवादियों से भूमिहारों के हक और हित की रक्षा के लिए संघर्ष का संकल्प लिया था.

करीब आठ साल तक मध्य बिहार के जहानाबाद, पटना, रोहतास, औरंगाबाद, गया और बक्सर जिलों में रणवीर सेना की आत्म रक्षार्थ प्रतिक्रियावादी घटनाओं से दहलता रहा. माओवादी और मालेवादी हिंसा को खत्म करने के लिए रणवीर सेना ने जो हिंसक वारदातें की वह दहला देनेवाली थीं. 1995 में पहली बार बड़ी घटना को अंजाम देते हुए रणवीर सेना ने अपने मुख्यालय के निकट सरथुआ गांव के छह मुशहरों को मौत के घाट उतार दिया था.

संभवत: ब्रह्मेश्वर मुकिया प्रतिक्रियावादी हिंसा को इतने हिंसक तरीके से अंजाम देना चाहते थे कि माओवादी हिंसा भी दहल जाए. वे और उनकी रणवीर सेना इसमें काफी हद तक सफल भी रहे. दिनांक 31 दिसंबर 1997 को ब्रहमेश्वर मुखिया की उपस्थिति में रणवीर सेना ने जहानाबाद के लक्ष्मणपुर-बाथे नामक गांव में एक साथ 59 लोगों की निर्मम हत्या कर दी. यह बिहार में हुए अबतक का सबसे बड़ा सामूहिक नरसंहार है. बता दें कि इस नरसंहार के मामले में कुल 18 लोगों को आजीवन उम्रकैद की सजा दी गई है. जबकि मुख्य अभियुक्त ब्रहमेश्वर मुखिया को इस मामले में बरी कर दिया गया.

8 जुलाई 2011 को ब्रह्मेश्वर सिंह को जेल से रिहा कर दिया गया था और रिहा होने के बाद वे एक बार फिर से सामाजिक राजनीतिक रूप से सक्रिय होने की कोशिश कर रहे थे. बीते 5 मई को उन्होंने अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन की स्थापना की थी लेकिन उसकी स्थापना के महीनेभर के भीतर ही उनकी जीवनलीला समाप्त कर दी गई. निश्चित रूप से उनके द्वारा गठित रणवीर सेना जिस तरह से लाल आतंक पर लगाम लगाया था उसने उन्हें बिहार की ताकतवर भूमिहार जाति में ईश्वर का स्थान दे दिया था.


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