सोमवार, 25 जून 2012

भांप रहे भूमिहारों की भूमिका


सियासत के अखाड़े में जब बात शह-मात की होती है, तो मौत दरकिनार कर दी जाती है। अखाड़े में विरोधी को मात देने के लिए शतरंज की हर चाल खेली जाती है। रणवीर सेना के संस्थापक एवं राष्ट्रवादी किसान संगठन के अध्यक्ष ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ मुखिया जी की हत्या के बाद बिहार में कुछ ऐसी ही राजनीति चल रही है। मुखिया की मौत पर सियासी रोटियां सेंकने में तमाम राजनीतिक दलों ने ताकत झोंक दी है। भूमिहार समुदाय के वोट बचाने की लिए मैदान-ए-जंग में कूदी भाजपा किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। चुनाव में भूमिहारों की भूमिका को भांप पार्टी के वरिष्ठ नेता और मंत्री गिरिराज सिंह ने मौत के बाद मुखिया को ‘गांधी’ की संज्ञा देने तक से परहेज नहीं किया। जदयू तो खामोश रहकर सवर्णों के साथ दलितों और महादलितों को भी खुश रखने की भरपूर कोशिश कर रहा है। न तो मुखिया के खिलाफ बयानबाजी हो रही है और न ही उनकी मौत पर आंसू बहाए जा रहे हैं।

विपक्ष को मिली ताकत : बिहार में जब सियासी बवंडर उठता है, तो इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देती है। लंबे अरसे से यह सियासी बवंडर थम चुका था। भाजपा-जदयू गठबंधन सरकार को मिले जनसमर्थन से ‘अपंग’ विपक्ष को ऐसे मुद्दे की तलाश अरसे से थी। लोकसभा चुनाव के करीब आते ही मुखिया की हत्या ने जैसे कमजोर विपक्ष को संजीवनी दे दी है। हत्या के बाद सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने तो यहां तक कह डाला कि अगर यह हत्या मेरे शासनकाल में हुई होती, तो लोग कहते कि मैंने ही कराई है। लालू ने एक ही शब्द में यह भी जता दिया कि मुखिया की हत्या किसी मामूली व्यक्ति के वश की बात नहीं। मुखिया की मौत में एक ‘सरकारी साजिश’ है। हत्या के दिन से अब तक रोज राजद नेता किसी न किसी बहाने मीडिया के सामने आकर बयान दे रहे हैं। कल तक कैमरे से दूरी बढ़ा चुके लालू भी रोज किसी न किसी मसले पर संवाददाता सम्मेलन कर मुखिया की मौत पर सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। साफ है कि लंबे समय बाद पाले में आए गेंद पर नेट गोल करने में राजद कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता।

धर्मसंकट में भाजपा : मुखिया की मौत से सत्ताधारी दल को भूमिहार के साथ ही सवर्ण वोट खिसकने का डर सता रहा है। इसमें सबसे अधिक नुकसान भाजपा को ही होने की आशंका है। भूमिहार, राजपूत, कायस्थ समेत सवर्ण जातियों का वोट भाजपा के पास माना जाता है। मुखिया की हत्या के बाद भूमिहार समुदाय के अलावा हर सवर्ण के मन में सरकार के प्रति गुस्सा है। खासकर, भाजपा के खिलाफ।

इसकी बड़ी वजह है, अपने वोटरों को सुरक्षा मुहैया नहीं करा पाना। बाथे नरसंहार में बरी होने के बाद राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही थी। सरकार का यह फैसला खास तौर से भूमिहार समुदाय के लोगों को कांटे की तरह चुभ रहा था। कारण, बाथे नरसंहार में मुखिया ही मुख्य साजिशकर्ता माने गए थे।

यह वही ब्रह्मेश्वर मुखिया हैं, जिन्होंने शुुरुआत से लेकर अपने सक्रिय रहने तक भाजपा के कई कद्दावर नेताओं को सियासी जमीन मुहैया कराई। अब मुखिया की मौत के बाद भाजपा नेताओं की इस हरकत ने भी भूमिहार समुदाय को गहरी ‘चोट’ दी है। ऐसे में भाजपा को भी सवर्ण वोट खिसकने का भय सता रहा है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी भूमिहारों के गुस्से को जायज ठहराते हैं। जबकि, भाजपा के वरिष्ठ नेता और मंत्री गिरिराज सिंह ने मुखिया को ‘गांधी’ कहकर भूमिहार समुदाय को परोक्ष रूप से ताकत देने की भरपूर कोशिश की।

कांग्रेस खुश, नीतीश खामोश : मुखिया की मौत को लेकर कांग्रेस भी पीछे नहीं है। भड़के भूमिहारों को अब ऐसे राजनीतिक दल की तलाश है, जो उनके समर्थन में हर वक्त खड़ा रहे। अब उनकी नजर कांग्रेस पर है। कांग्रेस भी इस मौके को भुनाने की भरपूर कोशिश कर रही है।

सूत्र बताते हैं कि बिहार कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता लगातार केंद्रीय नेतृत्व के संपर्क में हैं। जल्द ही बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष भी चुना जाना है। ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि भूमिहारों के बढ़ते आक्रोश और विकल्प की तलाश के बीच कांग्रेस का अध्यक्ष पद किसी भूमिहार नेता को ही सौंपा जाए। वहीं मुखिया की हत्या के बाद उठे सियासी बवंडर में अगर किसी की नाव सबसे अधिक खतरे में है, तो वह हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। यही वजह है कि हत्या के दिन से ही नीतीश समेत जदयू के तमाम नेता खामोश हैं।

सरकार के निर्माण में भूमिहारों की भूमिका को भांप नीतीश हर कदम फूंक-फंूक कर रख रहे हैं। उन्होंने न तो मुखिया की मौत पर तीखा बयान दिया, न ही मौत पर आंसू बहाए। कारण, अगर नीतीश, मुखिया को नरसंहारों का आरोपी मानते हुए कोई बयान देते, तो भूमिहारों का गुस्सा ज्वालामुखी बन जाता। अगर उन्होंने मुखिया की मौत पर आंसू बहाए, तो पिछड़े और महादलितों का वोट बैंक खिसक जाता।

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