गुरुवार, 19 अगस्त 2010

श्री कृष्ण सिन्हा

  
श्री कृष्णा (सिंह) (श्री बाबू) सिन्हा (1887-1961), बिहार केसरी के रूप में जाना जाता है, बिहार के  (1946-1961) के पहले मुख्यमंत्री थे. प्रख्यात राष्ट्रवादी डॉ. राजेंद्र प्रसाद और Dr.Anugrah नारायण सिन्हा और श्री बाबू आधुनिक बिहार के आर्किटेक्ट्स  माना जाता है ..  श्री बाबू पहले कांग्रेस मंत्रालय से 1937 में 1961 तक  बिहार के मुख्यमंत्री रहे .  श्री कृष्णा सिन्हा ने प्रतिष्ठित बैधनाथ धाम मंदिर में है दलितो को प्रवेश कि अनुमती दिलयी..उनके नेतृत्व में दलित उत्थान और सामाजिक प्रतिबद्धता तथा दलितों का सशक्तिकरण किया गया.. श्री कृष्ण सिन्हा ने देश के पहली बार मुख्यमंत्री थे जिन्होने बिहार में जमींदारी प्रथा की समाप्ति करायी... 

आजादी की जंग मे  आठ साल  कारावास मे बिताया..

हाल ही में भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने  बाबू और भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच विनिमय पत्रो की र एक पुस्तक जारी की . 

नेहरू श्री बाबू के पत्राचार मे मुख्य रूप सेविभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दो जैसे  भारतीय लोकतंत्र  और आजादी , राज्यपाल, केन्द्र राज्य संबंधों की भूमिका, नेपाल, जमींदारी उन्मूलन और शिक्षा के परिदृश्य में अशांति है..
 श्री बाबू. को उसकी विद्वता और पांडित्य  के लिए जाना था.उन्होने खुद ही 17000 पुस्तकों के अपने निजी संग्रह को 1959 में मुंगेर में श्री कृष्णा सेवा सदन नामक सार्वजनिक बना दिया.

परिवार

श्री बाबू का जन्म अपने नाना के  घर में 21 अक्टूबर 1887 को खन्वा में हुआ था.. आपका पैतृक गांव मौर मुंगेर जिले (शेखपुरा जिले) था . उनके पिता एक धार्मिक विचार वाले, मध्यम  भूमिहार ब्राह्मण थे. उसकी माँ भी एक बहुत ही सरल और धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थी.  जब श्री बाबू सिर्फ पाँच साल के थे तब ही मां की मृत्यु हो गई.  अपने गांव के स्कूल में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पाकर बाद में 1906 में पटना कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय में शामिल हुए. वे वकालत पडे और  मुंगेर मे 1915 से अभ्यास शुरू.किय.. इस दौरान, उन्होंने शादी की और दो बेटों, शिवशंकर  सिंह और बन्दिशंकर  का जन्म हुआ.


आजादी...Freedom struggle

वह पहले केन्द्रीय हिंदू कॉलेज, बनारस और बाद शाह मुहम्मद जुबैर के घर पर  महात्मा गांधी से मिले. मुंगेर में  करने के लिए ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त की कसम खाई. वह 1915 में कानून का अभ्यास शुरू कर दिया था, लेकिन उसे छोड़ दिया करने के लिए 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे.

 शाह मुहम्मद जुबैर के घर पर 1922 में पहली बार  गिरफ्तार किया गया था और कांग्रेस सेवादल को गैरकानूनी घोषित कर दिया. इस कार्रवाई के बाद लोगों द्वारा इन्हे बिहार केसरी घोषित किया गया .  जेल से 1923 में रीहा किया गया था और तुलसी जयंती के दिन  सेंट्रल स्कूल, खड़गपुर मे भारत दर्शन पर नाट्क प्रदर्शन किया गया. उसी वर्ष में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य बन गए.


1927 में, वह विधान परिषद के सदस्य बने और 1929 में बिहार प्रदेश कांग्रेस समिति के महासचिव बन गए. 1929 में प्रसिद्ध स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा शुरू   किसान सभा के महासचिव बने . 1930 में, श्री बाबू में नमक  सत्याग्रह किया. गिरफ्तारी के दौरान  हाथ और छाती को जला कर गंभीर चोटे दी गयी.  सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उन्होंने दो साल के लिए  गिरफ्तार किया गया था .  गांधी इरविन संधि के बाद छोड दिया गया  और फिर से  किसान सभा के साथ काम शुरू कर दिया.
 9 जनवरी, 1932 पर वह फिर से गिरफ्तार कर लिया और दो साल कीकठोर कारावास और१००० रुपये का जुर्माना किया गया था . वह हजारीबाग जेल से अक्टूबर, 1933 में छुटे.  1934 बिहार में भूकंप के बाद उन्होंने राहत और पुनर्वास का काम किया...  1934-37 से मुंगेर जिला परिषद के अध्यछ थे. सन् 1935 में, वह सेंट्रल असेंबली के सदस्य बन गए.
20 जुलाई 1937 मेंजब कांग्रेस सत्ता में आया,तब आप को बिहार प्रांत के प्रीमियर प्रधानमंत्री बनया  गया  था. वे और  उनके करीबी सहयोगी बिहार विभूति अनुग्रह बाबू राजनीतिक कैदियों के रिहाई के मुद्दे पर  राज्यपाल के साथ असहमत थे और इस्तीफा दे दिया. तब राज्यपाल ने इनके सभी माग को  स्वीकार किया . पुनः कार्य भार लिया. लेकिन  द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय लोगों की सहमति के बिना भारत को शामिल करने के सवाल पर फिर से 1939 में  सभी कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया.
1940 में, रामगढ़,  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 53 वें नेशनल कन्वेंशन मे महात्मा गांधी की प्रेरणा पर बिहार से पहली बार व्यक्तिगत सत्याग्रही बने .जब भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में शुरू की, तब 10 अगस्त को  गिरफ्तार किया गया और नौ महीने के लिए जेल  (22 नवम्बर 1940 - 26 अगस्त 1941).  1944 में हजारीबाग जेल से रिहा किया गया.... 
उसी वर्ष में उन्होंने वेल्स मेडिकल कॉलेज मे अपनी पत्नी को खो दिया. 

 शिमला सम्मेलन में भाग लिया और भारत के संविधान सभा के सदस्य भी थे. 

डा. सिन्हा  लगातार 73 वर्ष की उम्र  मे अपने 31 जनवरी 1961  से मृत्यु तक बिहार की सेवा की. 1978 में उनके सम्मान में, संस्कृति मंत्रालय  श्रीकृष्ण विज्ञान केन्द्र  संग्रहालय शुरू कर दिया.  पटना में सम्मेलन कक्ष, श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल  भी उसके नाम पर है. 

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