रविवार, 26 जून 2011

अतीत के स्वर्णिम स्वर



  अनेकांे अनेक पुन्य असफल प्रयासों की अथक परम्परा एवम्  प्रेरणा से ही स्वतंत्र भारत में सूर्योदय संभव हो सका था। वर्तमान राजनैतिक भ्रष्टाचार एवम नैतिक पतन ने युवाओं के सामने स्वतंत्रता के मायनें पर ही प्रश्न चिन्ह खडा कर दिया है। इन बदली परिस्थितियों से बलिदान गाथाओं पर भविष्य में कोरी कल्पना का ठप्पा लगने का संकट बढता जा रहा है। यदि एक साथ संरचित प्रयास करें तो इस शक्ति से  भला क्या संभव नहीं हो सकता।  आजादी के संग्राम की कहानियां भी कुछ ऐसी ही है।

बहरहाल एक गौरव गाथा है राय साहब उर्फ मंगरु राय जी की। जन्म सूरजपूर जिला आजमगढ वर्तमान में मउ उत्तर प्रदेश । राय साहब के बारे में यह माना जाता रहा है कि जिदद को होनी बनाना कोई इनसे सीखंे। मध्यम कद  गठिला शरीर जब लगौट बांध  अखाडे में उतर जाये तो धरती भी हिल पडे कसरत करते समय सासों की आवाजें से शेर की गर्जन भी मधम पड जाये।राय साहब को आजादी का नशा कुछ ऐसा चढा कि बस भारत मां को आजाद देखने की ठान ही ली। बात  1910 के बाद की होगी कांगे्रसी राय साहब नरम पंथ के अनुग्रह विनय के सिद्धातों से तंग आ चुके थे । तब कांग्रेस पार्टी या विचारधारा ना होकर एक मंच था ऐसा मंच जहां बुद्धिजीवी अपने विचार पूरे देश की जनता तक पहुचाते थे। ऐसे समय मे ंराय साहब ने कांग्रेस की दूसरी विचार धारा गरमपंथ पर विश्वास व बलिदान के भाव से पद रखा। राय साहब का मानना था कि रास्तों की सार्थकता मंजिलों के पहुच तक ही है।अगले दो दशकों मे ही अपने सर्वस्व को भारत की आजादी में न्यौछावर कर दिया। रुपया पैसा जमीदारी सब तहस नहस। दो पुत्र दोनों के दोनों तगडे तदरुस्त मानों राय साहब का प्रतिरुप। दोनों पुत्रों को आजादी के पावन यज्ञ की आहुति मानकर देश के लिए समर्पित कर दिया। बडे पुत्र चन्द्रदेव राय को आजाद हिन्द फौज के लेफिटनेट और छोटे पुत्र कृष्णदेव राय को चन्द्रशेखर आजाद का सहपथिक बनाने की प्रेरणा दी। बडे पुत्र चन्द्रदेव राय का कार्यक्षेत्र अधिकतर विदेशों में था कभी रंगून की गलियों में हथियारों की क्रिया विधि समझने में तो कभी बम बनाने का प्रशिक्षण देने में वर्षो तक घर परिवार के दूरी बढती गयी साथ ही अंग्रेजों का पहरा व गिरफतारी का संकट गहराता ही गया।

छोटे पुत्र कृष्णदेव राय को जंग जारी रखने के लिए धन की व्यवस्था करने हेतु काकोरी की तर्ज पर पिपरी टेन डकौती की जिम्मेदारी मिली। सर पर कफन बांध कुछ नौजवानों की टोली चंद बंदूको कारतूसों और मन में भारत मां के लिए कुछ कर गुजरने की चाह रखकर  चल पढे उस लूटरे को ल्ूाटने जिसके राज में कभी सूरज भी ना डूबता हो। सभी को पता था कि अगर जीते तो भी जेल पर क्रंाति जिंदा रहेगी और हारे तो शायद लाश को कफन भी ना मिलें। बहरहाल हिम्मते मरदा मददे खुदा। तिजोरी तो लूट ली गयी पर तोडने में सारे साथी थक गये और रात में रेलवे पटरी पर ही सुसताने लगे। कृष्णदेव राय को हल्की सी झपकी आ गयी। गुजरती ठण्डी हवा से मन मे ंडरावनी आवाजे पैदा हुयी मानों कोइ रो रहा हो उन्हे लगा कि उनकी अंतरात्मा उनसे कुछ कह रही हो। स्वप्न में भारत मां को गुलामी की जंजीरों में देख ही ऐसा उबाल आया कि जगकर कृष्णदेव राय के कुल्हाडी का पहला प्रहार ही फौलाद सी सिना ताने खडी तिजोरी सहना सकी टूटकर बिखर गयी।  पैसा और क्रंाति एक साथ रंग दिखाने लगे।  नये हथियार नया कारतूस नये भारत की नयी आवाज। कभी गांधी को रोक भी लें तो हजारों नवयुवकों में आजाद व भगत बनने की उत्कंठा रोक पाने में अंग्रेज असक्षम से दिखने लगे। जैसा हर असफल सरकार करती आयी है वही चल पडा अंग्रजों का व्यापक दमन चक्र। पहले राय साहब का घर जलाया गया फिर रंगून से गिरफतार कर जेल। जेल में अलग भी क्रां्रति वैचारिक कां्रति। कभी किताबों के लिए अनशन कभी मानवाधिकार हनन के खिलाफ भूख हडताले।कृष्णदेव राय जी ने जेल में बीताये समय का और अच्छा इस्तेमाल किया। पहलवानी के दावपेंच अन्य साथियों को सिखाया साथ ही विश्व की क्रंातियों गाथा को किताबों से आजादकर में  जेल में आत्मसात किया। कई भाषायें योग ध्यान के लिए मित्र संे बडे गुरु भला कहा मिलते

राय साहब ने जो बीज बाये थे अपने बलिदानों से सिचें थे उन्हे अंकुरित होने से रोक दिया जाता तो शायद विधाता भी स्वयं के गिरेवा में झाककर अपने वजूद की समीक्षा करने को मजबूर हो जाता। आप उन चंद खुसनसीब लोंगांे में थे जिन्हाने अपनी सारी भौतिक संपदा नष्ट हो जाने के बाद भी अपने दोनों धरतीपुत्रों के साथ आजाद भारत में सांस ली ।


कृष्णदेव राय विमल जी नें कुछ किताबें भी लिखी थी दूर्भाग्य से अब तक उनके परिवार जनों के अथक प्रयास के बावजूद भी एक भी पूर्णप्रति नहीं प्राप्त हो सकी है।

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