बुधवार, 8 सितंबर 2010

डॉ. सुभाष राय........ बर्फ़ और फूल



बर्फ़ और फूल
पैदा किये हैं पहाड़ ने
महज अपने बचाव के लिए

जिन्होंने नहीं देखीं हैं
पहाड़ों की रोशनीखोर सुरंगें
उन्हें झरनों के पास
बैठना और गीत गाना
बहुत अच्छा लगता होगा

वे दूधिया चोटियों पर
जम जाना चाहते होंगें
चट्टान की पोशाकों में

जिन्होंने नहीं देखीं हैं
पहाड़ों की गहरी सर्पिल घाटियाँ
उन्हें अच्छा लगता होगा
चट्टानों पर उगा वन
हिरन देखकर याद आतीं होंगीं
परिचय से गुज़री लड़कियाँ

जो नहीं देख सकें हैं
पहाड़ों का टूटना, उनका रेत बनना
वे सिर्फ़ इतना जानते हैं

कि पहाड़ गगनचुम्बी होते हैं
पहाड़ों पर बाढ़ नहीं आती
वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते
थक जाता है तूफ़ान
फूल-सी नरम
पड़ जातीं हैं आँधियाँ
जहाँ मैदान ख़त्म होता है
वहीँ से शुरू होता है पहाड़
मौसम का हमला
सिर्फ़ मैदानों पर होता है

शायद इसीलिए
लोग पहाड़ों पर जाते हैं
वहाँ जाकर आदमी
केंचुल छोड़ता है
और देवता बन जाता है ।

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