बुधवार, 8 सितंबर 2010

डॉ. सुभाष राय......... यह हाथ किसका है

यह हाथ किसका है
बार-बार मेरी जेब में उतरता हुआ
बेख़ौफ़, बेलौस
मुट्ठियाँ बंधते-बंधते खुली रह जाती हैं
दाँत भिंचना चाहते हैं
पर अपनी ही जीभ बीच में फँस जाती है
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यह हाथ अक्सर मेरे कमरे में तैरता है
मेरे और मेरी बीवी के बीच आ जाता है
हम करवटें बदलते रह जाते हैं

एक ही घर में एक साथ होकर भी
अलग-अलग

मेरा बेटा माँगता है
नए कपडे, नए जूते, नयी साईकिल

मेरी कलाइयों पर हथकड़ी की तरह
बंध जाता है यह हाथ

मैं जानता हूँ
एक दिन वह बड़ा होगा
उसे भी नज़र आयेंगे ये हाथ
बेवजह बिस्तर से किचेन तक
दखल देते हुए

मैं चुप हूँ
शायद वह चुप न रह सके !

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