बुधवार, 18 अगस्त 2010

रामवृक्ष बेनीपुरी

राम ब्रछ- मुजफ्फरपुर, बिहार के बेनिपुर गांव से प्रख्यात हिन्दी भाषा के लेखक तथा एक महान राष्ट्रवादी पत्रकार के साथ ही महान स्वतंत्रता सेनानी और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के निकट सहयोगी भी थे. महान हिंदी 'नाटक' अम्बापाली जिस पर एक हिंदी फिल्म 'आम्रपाली' बनी,आप ने ही लिख था.




   
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रामवृक्ष बेनीपुरी
रामवृक्ष बेनीपुरी



रामवृक्ष बेनीपुरी (२३ दिसंबर१८९९ - ९ सितंबर१९६८भारत के एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक के रूप में अविस्मणीय विभूति हैं। बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इनका जन्म २३ दिसंबर,१८९९ को उनके पैतृक गांव मुजफफरपुर जिले (बिहार) के बेनीपुर गांव के एक भूमिहर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उसी के आधार पर उन्होंने अपना उपनाम 'बेनीपुरी' रखा था। उनकी प्राथमिक शिक्षा ननिहाल में हुई थी। मैट्रिक पास करने के बाद वे असहयोग आंदोलन में शामिल हो गये। उनकी भाषा-वाणी प्रभावशाली थी। उनका व्यक्तित्त्व आकर्षक एवं शौर्य की आभा से दीप्त था। वे एक सफल संपादक के रूप में भी याद किये जाते हैं।वे राजनीतिक पुरूष न थे, पक्के देशभक्त थे। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आठ वर्ष जेल में बिताये थे। ये हिन्दी साहित्य के पत्रकार भी रहे और इन्होंने कई समाचारपत्रों जैसे युवक (१९२९) भी निकाले। इसके अलावा कई राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम संबंधी कार्यों में संलग्न रहे। ९ सितंबर१९६८ को वे इस संसार से विदा हो गये।
रचनाएँ
रामवृक्ष बेनीपुरी की आत्मा में राष्ट्रीय भावना लहू के संग लहू के रूप में बहती थी जिसके कारण आजीवन वह चैन की सांस न ले सके। उनके फुटकर लेखों से और उनके साथियों के संस्मरणों से ज्ञात होता है कि जीवन के प्रारंभ काल से ही क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण बार-बार उन्हें कारावास भोगना पड़ता। सन् १९४२ में अगस्त क्रांति आंदोलन के कारण उन्हें हजारीबाग जेल में रहना पड़ा। जेलवास में भी वह शान्त नहीं बैठे सकते थे। वे वहां जेल में भी आग भड़काने वाली रचनायें लिखते। जब भी वे जेल से बाहर आते उनके हाथ में दो-चार ग्रन्थों की पाण्डुलिपियां अवश्य होतीं, जो आज साहित्य की अमूल्य निधि बन गईं। उनकी अधिकतर रचनाएं जेलवास की कृतियां हैं।
सन् १९३० के कारावास काल के अनुभव के आधार पर पतितों के देश में उपन्यास का सृजन हुआ। इसी प्रकार सन् १९४६ में अंग्रेज भारत छोड़ने पर विवश हुए तो सभी राजनैतिक एवं देशभक्त नेताओं को रिहा कर दिया गया। उनमें रामवृक्ष बेनीपुरी जी भी थे। कारागार से मुक्ति की पावन पवन के साथ साहित्य की उत्कृट रचना माटी की मूरतें कहानी संग्रह और आम्रपाली उपन्यास की पाण्डुलिपियां उनके उत्कृष्ट विचारों को अपने अन्दर समा चुकी थीं।उनकी अनेक रचनायें जो यश कलगी के समान हैं उनमें जय प्रकाशनेत्रदानसीता की मां, 'विजेता', 'मील के पत्थर', 'गेहूं और गुलाब' शामिल है।'शेक्सपीयर के गांव में' और 'नींव की ईंट'। इन लेखों में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने देश प्रेम, साहित्य प्रेम, त्याग की महत्ता, साहित्यकारों के प्रति सम्मान भाव दर्शाया है वह अविस्मरणीय है।

सम्मान

दिनकर जी ने एक बार बेनीपुरी जी के विषय में कहा था, "स्वर्गीय पंडित रामवृक्ष बेनीपुरी केवल साहित्यकार नहीं थे, उनके भीतर केवल वही आग नहीं थी जो कलम से निकल कर साहित्य बन जाती है। वे उस आग के भी धनी थे जो राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है, जो परंपराओं को तोड़ती है और मूल्यों पर प्रहार करती है। जो चिंतन को निर्भीक एवं कर्म को तेज बनाती है। बेनीपुरी जी के भीतर बेचैन कवि, बेचैन चिंतक, बेचैन क्रान्तिकारी और निर्भीक योद्धा सभी एक साथ निवास करते थे।" १९९९ में भारतीय डाक सेवा द्वारा बेनीपुरी जी के सम्मान में भारत का भाषायी सौहार्द मनाने हेतु भारतीय संघ के हिन्दी को राष्ट्र-भाषा अपनाने की अर्ध-शती वर्ष में डाक-टिकटों का एक सेट जारी किया। उनके सम्मान में बिहार सरकार द्वारा वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार दिया जाता है।

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