बुधवार, 18 अगस्त 2010

राम धारी सिंह दिनकर जी

रामधारी सिंह 'दिनकर हिन्दी के महान कवि के रूप में जाने जाते है. वह बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव से थे.भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार के कुलपति तथा पंडित जवाहर लाल नेहरू के करीबी दोस्त भी थे. उन्होंने अपनी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा प्रसिद्ध कविता उर्वशी के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला . वह तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित है. उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें 'कुरुक्षेत्र, नील कुसुम, रस्मिरथि, हमरी सन्स्क्रितिक एकता, दिनकर की डायरी है ।













भारतीय उर्जस्विता को काव्य रूप में प्रस्तुत करने वाले जन कवि 'दिनकर' ने बिहार के मुंगेर जिले के सिमरियाघट नामक ग्राम में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में २३ सितम्बर १९०८ को जन्म लिया।
शिक्षा-दीक्षा- संस्कृत के एक पंडित के पास अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ करते हुएइन्होने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की एवं तदोपरांतनिकटवर्ती बोरो नमक ग्राम में राष्ट्रीय मिडल स्कूल जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था केविरोध में खोला गया थामें प्रवेश प्राप्त किया। यही से इनके मनो मस्तिष्क मेंराष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा था। हाई स्कूल की शिक्षा इन्होनेमोकामाघाट हाई स्कूल से प्राप्त की। इसी बीच इनका विवाह भी हो चुका था तथा येएक पुत्र के पिता भी बन चुके थे। पटना विश्वविद्यालय से इन्होने बी० ए० आनर्स कीपरीक्षा उत्तीर्ण की ।
जीवन-संघर्षबी० ए० उत्तीर्ण करने तक घर की स्थिति खराब हो चुकी थी अतएवइन्होने एक नवस्थापित हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक की नौकरी स्वीकार कर ली परजमींदारों के दबावों को देखते हुए पराधीनता के धुर विरोधी 'दिनकरने यह नौकरीछोड़ दी। इसके उपरान्त उन्होंने सरकार की और से प्रदत्त सब-रजिस्ट्रार का पदस्वीकार किया पर यहाँ भी पहले पांच वर्षों में ही बीस बार से ज्यादा स्थानांतरण कियागया तथा अंग्रेज सरकार के गुप्तचर पीछे लगे रहे। जय प्रकाश नारायण के कहने परनौकरी में बने रहे एवं बाद में सरकार ने इन्हें प्रचार-विभाग में नियुक्त कर दिया। अबतक इन्होने लिखना प्रारंभ कर दिया था 'रेणुका', 'प्राणभंग', 'हुंकार', 'रसवंती'एवं 'द्वंद्वगीत' इनके संघर्ष काल की रचनाएं हैं। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति केउपरांत डेढ़ साल का अवकाश लेकर दिनकर जी ने युद्ध के प्रश्न को लेकर अपनीअनुभूति एवं मानसिक द्वंद्व तथा पीड़ा को 'कुरुक्षेत्रके रूप में महाकाव्य में प्रस्तुतिप्रदान की साथ ही 'उदयाचलनमक अपनी एक प्रकाशन संस्था का प्रारंभ किया
सन १९५२ ई० में ये भारतीय संसद के राज्य सभा के सदस्य बने तथा १९५५ ई० मेंइन्हें पोलैंड की राजधानी वारसा में भारत सरकार की ओर से विश्व-कवि-सम्मलेन मेंभारतीय प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा गया। १९५९ ई० में इन्हें राष्ट्रभाषा आयोगका सदस्य नियुक्त किया गया तथा इसी वर्ष पद्मभूषण द्वारा सम्मानित किया गया'संस्कृति के चार अध्याय' पुस्तक पर दिनकर को ९५९ ई० में ही साहित्यअकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ। १९६२ ई० में भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा डि०लिट० की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया तथा फिर वे भागलपुरविश्वविद्यालय के कुलपति बने। सन १९६५ से १९७१ तक दिनकर भारत सरकार केहिंदी सलाहकार रहे। २५ अप्रैल १९७४ को इनके देहावसान के रूप में हिंदी साहित्यजगत को एक अपूर्णनीय क्षति हुयी
कृतित्वदिनकर जी ने गद्य एवं पद्य दोनों क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान दिया है-
पद्य .प्राणभंग .रेणुका .हुंकार .रसवंती .द्वंद्वगीत .कुरुक्षेत्र.सरसधेनी .बापू .इतिहास के आंसू १०.धुप और धुंआ ११.रश्मि राठी१२.दिल्ली १३.नीम के पत्ते १४.नील कुसुम १५.चक्रवाल १६.कविश्री १७.सीपीऔर शंख १८.नए सुभाषित १९.उर्वशी २०.परशुराम की प्रतीक्षा। 
गद्य.अर्ध नारीश्वर .मिट्टी की ओर .रेती के फूल .हमारी सांस्कृतिकएकता .संस्कृति के चार अध्याय .शुद्ध कविता की खोज .काव्य कीभूमिका आदि ।
इन रचनाओं के अतिरिक्त इन्होने बालोपयोगी साहित्य की भी रचनाएं की हैंचित्तोड़का साकासूरज का ब्याहधुप-छाँह एवं मिर्च का मजा। 
वस्तुतः रामधारी सिंह दिनकर एक युगद्रष्टा कवि थे जिन्होंने स्थायी शांति एवं स्वत्वकी रक्षा के लिए अपनी लेखनी को क्रांतिकारी रूप प्रदान किया। उनके व्यक्तित्व कापरिचय श्री रामवृक्ष बेनीपुरी ने इस प्रकार दिया था- "दिनकर इन्द्रधनुष है जिसपरअंगारे खेलते हैं।" कविवर दिनकर की ये पंक्तियाँ भी कुछ ऐसा ही उद्घोष करती हैं-जहाँ जहाँ घन तिमिर ह्रदय में भर दो वहां बिभा प्यारी,/ दुर्बल प्राणों कीनस-नस में देवफूंक दो चिंगारी ये पंक्तियाँ दिनकर को राष्ट्रीय मानसिकता,उर्जस्वितासाहस और आक्रोश के कवि के रूप में स्थापित करते हैं

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