गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

ब्रह्मर्षि वंश विस्तार

ब्रह्मर्षि वंश विस्तार

श्रुति, स्मृति, इतिहास और पुराण आदि सिद्ध अयाचक और याचक द्विविध ब्राह्मण प्रदर्शनपूर्वक, उनके धर्म, आचार-व्यवहार एवं पदवियों आदि की विवेचना, अयाचक ब्राह्मणों के साथ याचक ब्राह्मणों के विवाह संबंध आदि का प्रदर्शन, आधुनिक इतिहास, व्यवस्थापत्र आदि प्रमाण निरूपण और विविध आक्षेप निराकरण आदि अति प्रयोजनीय विषयों की सविस्तार मीमांसा।

श्री मत्पर महंस परिव्राजकाचार्य श्री 108 स्वामी सहजानन्द सरस्वती, द्वारा लोकोपराकार्थ विरचित

आदावन्ते च यन्नास्तिर् वत्तामानेपि तत्ताथा।
वितथै: सदृशा: सन्तोवितथा इव लक्षिता:॥

नाम परिवर्तन
आज से 8-10 वर्ष पहले कुछ भूमिहार ब्राह्मणों ने, जिनसे हमारा विशेष परिचय था, हमसे यह अनुरोध किया कि हम लोगों के इतिहास से सम्बन्ध रखने वाला कोई ग्रन्थ आप लिख दें तो बड़ा उपकार हो। हम इस बात से सहमत हो गये। प्रथम कोई विशेष विचार न था, इसलिए तय पाया कि उस ग्रन्थ का नाम भूमिहार ब्राह्मण परिचय रखा जाये। हमारा विचार था कि कोई छोटी-मोटी पुस्तक लिख दी जायेगी। पर, जब हमने सामग्री एकत्र करना और लिखना आरम्भ किया तो ब्राह्मण मात्र के इतिहास और धर्म पर प्रकाश डालने और विचार करने को हम बाध्य हो गये। इसके लिए बीच में और भी कारण आ गये। फलत: ग्रन्थ विस्तृत हो गया या और उसमें सभी ब्राह्मणों का विचार भी आ गया। फिर भी पूर्वनिश्चय और संकल्प के अनुसार वही रखा गया। परन्तु हमें इस बात का दु:ख उसी समय हुआ और वह अन्त तक बना रहा कि व्यापक विषय की पुस्तक लिखकर उसका संकुचित नाम रखना अच्छा न हुआ और वह दु:ख तभी से बराबर बना रहा। इतना निश्चय तो हमने उसी समय कर लिया था कि दूसरी आवृत्ति में इसका नामक अवश्यमेव बदल देना होगा। तदनुसार कुछ और भी इतिहास-सामग्री और धार्मिक विषय मध्य में संगृहीत हुए और पूर्व पुस्तक में उनका भी समावेश करके प्रस्तुत पुस्तक तैयार की गयी हैं और नाम भी उसी के अनुसार ब्रह्मर्षि वंश विस्तार रखा गया हैं, जो इस ग्रन्थ के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। त्यागियों और गौड़ों के सम्बन्ध आदि का विशेष रूप से इस बार समावेश किया गया हैं। यद्यपि बहुत यत्न करने पर भी सरस्वतों और महियालों के सम्बन्ध की विशेष बातें इस बार न दी जा सकीं। तथापि आशा हैं तीसरे संस्करण में यह कमी भी पूरी हो जायेगी। इस व्यापक नाम से प्रचार भी विशेष होगा, जो पहली बार इसी कारण नहीं हो सका और यही हमारा लक्ष्य हैं।

-सहजानन्द सरस्वती

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