मंगलवार, 7 सितंबर 2010

'मेरे भीतर तुम उपस्थित रहोगे' डॉ. सुभाष राय


ओ मेरे पिता! तुम्हारा
अंश हूँ मैं सम्पूर्ण
मां के गर्भ में रचा
तुमने मुझे अपने लहू से 

तुमसे मुक्त कैसे
हो पाऊंगा कभी
कैसे वापस लौटा सकूँगा तुझे
उसका अंश भी जो
तुमने दिया है मुझे 
सब कुछ निछावर करके भी

अपने आंसुओं के साथ
रखा तुमने मुझे
जो करुणा और प्रेम
पाता हूँ अपने भीतर
तुम्हारी संवेदना से सिंचित है वह
कैसे विछड़ सकता हूँ मैं
तुमसे, तुम्हारे आंसुओं से

मैं जानता हूँ तुम रहोगे
सदा, सर्वदा मेरी आत्मा में
ज्योति की तरह दीप्त
मेरी नसों में बहते हुए
शताब्दियों के इतिहास की तरह
समय में ओझल वर्तमान की तरह
युग-युगों में फैले
भविष्य की तरह

भले ही तुम्हारा शरीर थम जाये
तुम्हारी हड्डियाँ तुम्हारा बोझ
उठाने से मना कर दें
तुम्हारा ह्रदय धड़कने से
इनकार कर दे
भले ही तुम संसार को
उसके पार्थिवत्व को
किसी भी पल अस्वीकार कर दो
पर मैं तुम्हारा मूर्त स्वीकार हूँ
तुम्हारा पूर्ण प्राकट्य हूँ 
मेरे भीतर तुम उपस्थित रहोगे
तब भी, जब नहीं होगे
किसी जागतिक दृश्य में

मां ने तुम्हारी प्रतिकृति में
जो नवचैतन्य सौंपा था तुझे
उसकी प्रथम श्वांस के साक्षी हो तुम 
तुम्हारी बाँहों में अनंत
अंधकार से मुक्ति पाई मैंने
अपनी अजस्र निश्छलता से
सींचकर तुमने मनुष्यत्व दिया मुझे
जब तक आसमान के नीचे
मनुष्य होगा, मैं हूँगा, तुम होगे

मैं जब कभी हताश होता हूँ
थक जाता हूँ, असहज हो जाता हूँ
अपने कंधे पर महसूस करता हूँ
तुम्हारे खुरदरे हाथ
और निकल आता हूँ
नैराश्य के विकट व्यूह से
जीवन का पहिया हाथों में
सम्हाले युद्ध को तत्पर
अभिमन्यु की तरह

जब कभी आत्मीय प्रवंचनाएं
क्रोधाविष्ट हो घेरतीं हैं मुझे
छल-छद्म के साथ
उपस्थित होतीं हैं
तुम्ही मुझे मृत्यु से संवाद
की शक्ति सौंपते हो
और मैं यमराज से भी नहीं डरता
नचिकेता हो जाता हूँ

जब कभी संशय में होता हूँ
समरभूमि के बीच में
लडूं या मुक्ति पा लूं रण से
संघर्ष और कर्तव्य के संबंधों
को समझने में असमर्थ
हो जाता हूँ पूरी तरह
मेरे भीतर से निकलकर
सामने आ जाते हो
पटु महानायक कृष्ण की तरह 
पलायन की ओर
रथ हांकने से रोक लेते हो
मेरा अर्जुन उठ खड़ा होता है
अपने गांडीव के साथ
याद आ जाता है जीवन
का आप्त वाक्य-
मामनुस्मर युद्ध च

मैं जानता हूँ तुम कुछ नहीं
कुछ भी नहीं चाहते मुझसे
पर मैं कुछ देना चाहता हूँ
सिर्फ यही है मेरे पास
लो, मैं देता हूँ वचन
तम्हे कभी आहत नहीं करूँगा
दुःख नहीं दूंगा
बना रहूँगा
तुम्हारा अभिमन्यु
तुम्हारा नचिकेता
तुम्हारा अर्जुन
**********

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें