बुधवार, 18 अगस्त 2010

भारतीय किसान आंदोलन के जनकः स्वामी सहजानंद सरस्वती

                                                             डॉ देवकुमार पुखराज



भारत में संगठित किसान आंदोलन खड़ा करने का श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को जाता हैउन्होंने अंग्रेजी दासता के खिलाफ लड़ाई लड़ी और किसानों को जमींदारों के शोषण से मुक्त कराने के लिए निर्णायक संघर्ष कियादण्डी संन्यासी होने के बावजूद सहजानंद ने रोटी को हीं भगवान कहा और किसानों को भगवान से बढ़कर बताया.स्वामीजी ने नारा दिया था-
जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा ,अब सो कानून बनायेगा,
ये भारतवर्ष उसी का हैअब शासन वहीं चलायेगा।
ऐसे महान नेता,युगद्रष्टा और किसानों के मसीहा का जन्म उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव में सन् 1889 में महाशिवरात्रि के दिन हुआ थास्वामीजी के बचपन का नाम नौरंग राय थाउनके पिता बेनी राय मामूली किसान थेनौरंग जब छह साल के थे तभी उनकी माताजी का स्वर्गवास हो गयाचाची ने उनका लालन-पालन कियाकहते हैं पूत के पांव पलने में हीं दिखने लगते हैंबालक नौरंग में भी महानता के गुण बचपन से हीं दिखने लगेप्राथमिक शिक्षा के दौरान हीं उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना शुरू कर दिया .पढ़ाई के दौरान हीं उनका मन आध्यात्म में रमने लगाबालक नौरंग ये देखकर हैरान थे कि कैसे भोले-भाले लोग नकली धर्माचार्यों से गुरु मंत्र ले रहे हैंउनके बालमन में धर्म की इस विकृति के खिलाफ पहली बार विद्रोह का भाव उठाउन्होंने इस परंपरा के खिलाफ आवाज उठाने का संकल्प लियाधर्म के अंधानुकरण के खिलाफ उनके मन में जो भावना पली थी कालांतर में उसने सनातनी मूल्यों के प्रति उनकी आस्था को और गहरा कियाउनके मन में वैराग्य पैदा होने लगाघर वालों ने बच्चे की ये हाल देखी तो समय से पहले हीं उनकी शादी करा दीलेकिन जिसके सर पर समाज और देश की दशा सुधारने का भूत सवार हो वो भला पारिवारिक जीवन में कहां बंधने वाला थासंयोग ऐसा रहा कि गृहस्थ जीवन शुरू होने के पहले हीं उनकी पत्नी भगवान को प्यारी हो गयीं.ये सन् 1905 के आखिरी दिनों की बात हैहालांकि दो साल बाद हीं उन्होंने विधिवत संन्यास लेने का फैसला किया और दशनामी दीक्षा लेकर स्वामी सहजानंद सरस्वती हो गयेबाद के सात साल उन्होंने धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने और सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों का अध्ययन करने में बितायाइसी दौरान उन्हें काशी में समाज की एक और कड़वी सच्चाई से रू--रू होना पड़ादरअसल काशी के कुछ पंड़ितों ने उनके संन्यास का ये कहकर विरोध किया कि ब्राह्मणेतर जातियों को दण्ड धारण करने का अधिकार नहीं है.स्वामी सहजानंद ने इसे चुनौती के तौर पर लिया और विभिन्न मंचों पर शास्त्रार्थ कर ये साबित किया कि भूमिहार भी ब्राह्मण हीं हैं और हर योग्य व्यक्ति संन्यास ग्रहण करने की पात्रता रखता है.बाद के दिनों में ब्रह्मर्षि वंश विस्तर और भूमिहार-ब्राह्मण परिचय जैसे ग्रंथ लिखकर उन्होंने अपनी धारण को सैद्धांतिक जामा पहनायावैसे स्वामीजी ने जब बिहार में किसान आंदोलन शुरू किया तो उनके निशाने पर अधिकांश भूमिहार जमींदार हीं थे जो अपने इलाके में किसानों के शोषण का पर्याय बने हुए थे.
महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ असहयोग आंदोलन बिहार में गति पकड़ा तो सहजानंद उसके केन्द्र में थेघूम-घूमकर उन्होंने अंग्रेजी राज के खिलाफ लोगों को खड़ा कियाइस अभियान ने युवा संन्यासी को गांव-देहात की स्थिति को नजदीक से देखने का पर्याप्त अवसर दियालोग ये देखकर अचरज में पड़ जाते कि गेरूआ वस्त्रधारी ये कैसा संन्यासी है जो मठ-मंदिरों में तप साधना करने की बजाय दलितों-वंचितों की स्थिति को जानने-समझने में अपनी ऊर्जा खपा रहा हैये वो समय था जब स्वामी जी भारत को समझ रहे थेइस क्रम में उन्हें एक अजूबा अनुभव हुआस्वामीजी ने देखा कि अंग्रेजी शासन की आड़ में जमींदार गरीब किसानों पर जुल्म ढा रहे हैंबिहार के गांवों में गरीब लोग अंग्रेजो से नहीं वरन् गोरी सत्ता के इन भूरे दलालों से आतंकित हैंकिसानों की हालत गुलामों से भी बदतर हैयुवा संन्यासी का मन एक बार फिर नये संघर्ष की ओर उन्मुख होता हैवे किसानों को लामबंद करने की मुहिम में जुटतें हैंसन् 1929 में उन्होंने बिहार प्रांतीय किसान सभा की नींव रखीइस मंच से उन्होंने किसानों की कारुणिक स्थिति को उठायाजमींदारों के शोषण से मुक्ति दिलाने और जमीन पर रैयतों का मालिकाना हक दिलाने की मुहिम शुरू कीइस रूप में देखें तो भारत के इतिहास में संगठित किसान आंदोलन खड़ा करने और उसका सफल नेतृत्व करने का एक मात्र श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को जाता हैकांग्रेस में रहते हुए स्वामीजी ने किसानों को जमींदारों के शोषण और आतंक से मुक्त कराने का अभियान जारी रखाउनकी बढ़ती सक्रियता से घबड़ाकर अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दियाकारावास के दौरान गांधीजी के कांग्रेसी चेलों की सुविधाभोगी प्रवृति को देखकर स्वामीजी हैरान रह गयेउन्होंने देखा कि जेल में बंद कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता सुविधापूर्वक जीने के लिए कैसे-कैसे हथकंड़े अपना रहे हैंस्वभाव से हीं विद्रोही स्वामीजी का कांग्रेस से मोहभंग होना शुरू हो गया.जब1934 में बिहार प्रलयंकारी भूकंप से तबाह हुआ तब स्वामीजी ने बढ़-चढ़कर राहत और पुनर्वास के काम में भाग लियाइस दौरान स्वामीजी ने देखा कि प्राकृतिक आपदा में अपना सबकुछ गंवा चुके किसानों को जमींदारों के लठैत टैक्स देने के लिए प्रताड़ित कर रहे हैउन्होंने तब पटना में कैंप कर रहे महात्मा गांधी से मिलकर किसानों की दशा बतायी और दोहरी मार से मुक्ति दिलाने के लिए प्रयास करने की मांग कीजवाब में गांधीजी ने कहा कि जमींदारों के अधिकांश मैनेजर कांग्रेस के कार्यकर्ता है .वे निश्चित तौर पर गरीबों की मदद करेंगेगांधीजी ने दरभंगा महाराज से मिलकर भी किसानों के लिए जरूरी अन्न का बंदोबस्त करने के लिए स्वामीजी से कहाकहते है कि गांधीजी की ऐसी बातें सुनकर स्वामी सहजानंद आग बबूला हो गये और तत्काल वहां से ये कहकर चल दिए कि किसानों का सबसे पड़ा शोषक तो दरभंगा राज हीं हैमैं उससे भीख मांगने कभी नहीं जाऊंगा.इस घटना ने कांग्रेस नेताओं की कार्यशैली से नाराज चल रहे स्वामीजी का गांधीजी से भी पूरी तरह मोहभंग कर दिया.विद्रोही सहजानंद ने एक झटके में हीं चौदह साल पुराना संबंध तोड़ दिया और किसानों को हक दिलाने के लिए संघर्ष को हीं जीवन का लक्ष्य घोषित कर दियाउन्होंने नारा दिया -कैसे लोगे मालगुजारी,लट्ठ हमारा जिन्दाबादबाद में यहीं नारा किसान आंदोलन का सबसे प्रिय नारा बन गया.वे कहते थे,अधिकार हम लड़ कर लेंगे और जमींदारी का खात्मा करके रहेंगेउनका ओजस्वी भाषण किसानों पर गहरा असर डालता थाकाफी कम समय में किसान आंदोलन पूरे बिहार में फैल गयास्वामीजी का प्रांतीय किसान सभा संगठन के तौर पर खड़ा होने के बजाए आंदोलन बन गयाइस दौरान किसानों की सैकड़ों रैलियां और सभाएँ हुईबड़ी संख्या में किसान स्वामीजी को सुनने आते थेबाद के दिनों में उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी नेताओं से हाथ मिलायाअप्रैल,1936 में कांग्रेस के लखनऊ सम्मेलन में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना हुई और स्वामी सहजानंद सरस्वती को उसका पहला अध्यक्ष चुना गयाएम जी रंगाई एम एस नंबूदरीपादपंड़ित कार्यानंद शर्मापंडित यमुना कार्यजी,आचार्य नरेन्द्र देवराहुल सांकृत्यायनराम मनोहर लोहियाजयप्रकाश नारायणपंडित यदुनंदन शर्मापीसुन्दरैया और बंकिम मुखर्जी जैसे तब के कई नामी चेहरे किसान सभा से जुड़े थेसभा ने उसी साल किसान घोषणा पत्र जारी कर जमींदारी प्रथा के समग्र उन्मूलन और किसानों के सभी तरह के कर्ज माफ करने की मांग उठाई.अक्टूबर 1937 में सभा ने लाल झंड़ा को संगठन का निशान घोषित किया.किसानों के हक की लड़ाई बड़े पैमाने पर लड़ी जाने लगी थीदस्तावेज बताते हैं कि स्वामी सहजानंद के नेतृत्व में किसान रैलियों में जुटने वाली भीड़ कांग्रेस की सभाओं में आने वाली भीड़ से कई गुना ज्यादा होती थी.संगठन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1935 में इसकी सदस्यों की संख्या अस्सी हजार थी जो 1938 में बढ़कर दो लाख पचास हजार हो गयीशायद यहीं वजह हुआ कि इसके नेताओं की कांग्रेस से दूरियां बढ़ गयीवैसे बिहार और संयुक्त प्रांत में कांग्रेस सरकार के साथ कई बार इनकी तीखी झड़पें भी हुईकिसान आंदोलन के संचालन के लिए पटना के समीप बिहटा में उन्होंने आश्रम स्थापित कियावो सीताराम आश्रम आज भी है .
किसान हितों के लिए आजीवन सक्रिय रहे स्वामी सहजानंद ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ कई रैलियां कीवे उनके फारवॉड ब्लॉक से भी निकट रहेसीपीआई भी स्वामीजी को अपना आदर्श मानती रहीआजादी की लड़ाई के दौरान जब उनकी गिरफ्तारी हुई तो नेताजी ने 28 अप्रैलप्रैल को ऑल इंडिया स्वामी सहजानंद डे घोषित कर दियाबिहार के प्रमुख क्रांतिकारी लोक कवि बाबा नागार्जुन भी स्वामीजी से अति प्रभावित थेउन्होंने वैचारिक झंझावातों के दौरान बिहटा आश्रम में जाकर स्वामीजी से मार्गदर्शन प्राप्त किया था.
स्वामी सहजानंद संघर्ष के साथ हीं सृजन के भी प्रतीक पुरूष हैंअपनी अति व्यस्त दिनचर्या के बावजूद उन्होंने कोई दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकों की रचना कीसामाजिक व्यवस्था पर जहां उन्होंने भूमिहार ब्राह्मण परिचयझूठा भय मिथ्या अभिमानब्राह्मण कौन,ब्राह्मण समाज की स्थिति जैसी पुस्तकें हिन्दी में लिखी वहीं ब्रह्मर्षि वंश विस्तर और कर्मकलाप नामक दो ग्रंथों का प्रणयन संस्कृत और हिन्दी में किया.उनकी आत्मकथा मेरा जीवन संघर्ष के नाम से प्रकाशित हैआजादी की लड़ाई और किसान आंदोलन के संघर्षों की दास्तान उनकी -किसान सभा के संस्मरण,महारुद्र का महातांडव,जंग और राष्ट्रीय आजादीअब क्या हो,गया जिले में सवा मास आदि पुस्तकों में दर्ज हैंउन्होंने गीता ह्रदय नामक भाष्य भी लिखा .
किसानों को शोषण मुक्त करने और जमींदारी प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए स्वामी जी26 जून ,1950 को महाप्रयाण कर गयेउनके जीते जी जमींदारी प्रथा का अंत नहीं हो सकालेकिन उनके द्वारा प्रज्जवलित ज्योति की लौ आज भी बुझी नहीं हैआजादी मिलने के साथ हीं जमींदारी प्रथा को कानून बनाकर खत्म कर दिया गयालेकिन प्रकारांतर से देश में किसान आज भी शोषण -दोहन के शिकार बने हुए हैंकर्ज और भूख से परेशान किसान आत्महत्या कर रहे हैंआज यदि स्वामीजी होते तो फिर लट्ठ उठाकर देसी हुक्मरानों के खिलाफ संघर्ष का ऐलान कर देतेलेकिन दुर्भाग्य से किसान सभा भी हैउनके नाम पर अनेक संघ और संगठन सक्रिय हैंलेकिन स्वामीजी जैसा निर्भीक नेता दूर -दूर तक नहीं दिखताउनके निधन के साथ हीं भारतीय किसान आंदोलन का सूर्य अस्त हो गयाराष्ट्रकवि दिनकर के शब्दों में दलितों का संन्यासी चला गया.
-पुखराज

1 टिप्पणी:

  1. My Father had written a Book on Origin of Bhumihar Brahman. The name of Book is Birpur Darpan बीरपुर दर्पण . I have posted some of its pages on my Blog Birpur Diary . the link is here
    http://birpurdiary.blogspot.com/

    आपका ब्लॉग भी बहुत बढ़िया है . सूची में एक और भूमिहार बिभूति बालेस्वर राय (IAS) का नाम छूट गया है

    जवाब देंहटाएं