बुधवार, 18 अगस्त 2010

अजर-अमर परशुराम

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।। - श्रीमद्‍भागवत महापुराण

अश्वत्थामा, हनुमान और विभीषण की भाँति परशुराम भी चिरजीवी हैं। भगवान परशुराम तभी तो राम के काल में भी थे और कृष्ण के काल में भी उनके होने की चर्चा होती है। कल्प के अंत तक वे धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे।

विष्णु के छठे 'आवेश अवतार' परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि अर्थात तृतीया को रात्रि के प्रथम प्रहर में भृगु ऋषि के कुल में हुआ था। उनकी माता का नाम रेणुका और पिता ऋषि जमदग्नि थे। परशुराम शंकर भगवान के परम भक्त थे। उनका वास्तविक नाम राम था किंतु परशु धारण करने से परशुराम कहा जाने लगे। भगवान शिव से उन्होंने एक अमोघास्त्र प्राप्त किया था जो परशु नाम से प्रसिद्ध है।


शिक्षा-दीक्षा-शक्ति : परशुराम योग, वेद और नीति में पारंगत थे। ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की। कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।

सहस्रबाहु से युद्ध : परशुराम राम के समय से हैं। उस काल में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार था। राजा सहस्रबाहु अर्जुन आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था। परशुराम ने उक्त राजा सहस्रबाहु का महिष्मती में वध कर ऋषियों को भयमुक्त किया।

सहस्रबाहु के पुत्रों ने कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया। जब इस बात का परशुराम को पता चला तो क्रोधवश उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों की वंश-बेल का 21 बार विनाश किया।

पितृभक्त परशुराम : पुराणों में उल्लेख मिलता है कि परशुराम की माता रेणुका से अनजाने में कोई अपराध हो गया था। पिता जमदग्नि उक्त अपराध से अत्यंत क्रोधित हुए तथा अपने पुत्रों को आज्ञा दी कि रेणुका का सिर काट डालो। स्नेहवश पुत्र ऐसा न कर सके लेकिन परशुराम ने माता तथा भाइयों का सिर पिताश्री की आज्ञानुसार काट डाला।

पिता इस पितृभक्ति से प्रसन्न हुए। उन्होंने परशुराम से वर माँगने को कहा। परशुराम ने कहा कि पिताश्री मेरी माता तथा भाई पुनः जीवित हो उठें तथा उन्हें मेरे द्वारा वध किए जाने की स्मृति न रहे और मैं निष्पाप होऊँ- मैं ऐसा वर चाहता हूँ। पिता जमदग्नि ने तथास्तु कहा।

परशुराम की लीला : जब एक बार गणेशजी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया तो, रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दिया, जिससे गणेश का एक दाँत नष्ट हो गया और वे एकदंत कहलाए। जनक, दशरथ आदि राजाओं का उन्होंने समुचित सम्मान किया। सीता स्वयंवर में श्रीराम का अभिनंदन किया। कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन किया। असत्य वाचन करने के दंड स्वरूप कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। इस तरह परशुराम के अनेक किस्से हैं।

परशुराम का धनुष : पौराणिक कथा में वर्णित है कि महेंद्रगिरि पर्वत भगवान परशुराम की तप की जगह थी। और अंतत: वह उसी पर्वत पर कल्पांत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए थे। कुछ समय पूर्व भिलाई में स्‍थित इस पर्वत पर से पुरातत्व विभाग को नब्बे किलो वजन का एक धनुष मिला है इसलिए माना जा रहा है कि इतना वजनी धनुष शायद परशुराम का ही हो।

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